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अबला नही सबला हूं मै,
ये गगन और धरा हूं मैं,
हू प्रेम की मैं चिंगारी भी,
जरूरत पर हू कटारी सी,
नवजोति जला मै सहारा दूं,
चमका किस्मत का सितारा दूं।
लेकिन….
लेकिन फिर भी यह कहती हूं,
बिन तेरे मैं अधूरी हूं,
हूं तेरे मन का गीत कोई,
जीवन पथ का मीत कोई,
तेरे जीवन की अभिलाषा हूं,
निस्वार्थ प्रेम की भाषा हू।
हूं माँ की आँचल की छाव मैं,
मैं ही पिता का स्नेह भी हूं,
है घर की रौनक मुझसे ही,
(बेटी - बहू) एक जीवन में दो रूप हूं,
मैं प्रकृति का निर्माण भी हूं,
इस जीवन का निर्वाण भी हूं।
कण कण में मुझको पाओगे,
मेरा अस्तित्व समेट न पाओगे,
उन्नति की सीढ़ी भी मैं,
आकक्षाओं का आधार भी हूं,
हूं ईश्वर की सुंदर रचना मैं,
एक छोटा सा संसार भी हूं।
अबला नही सबला हूं मै,
ये गगन और धरा हूं मैं ।।
-शाम्भवी पाण्डेय
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