मिट्टी का कर्ज- एक कविता
A army Poem in hindi, संभव, shambhav, शाम्भवी पाण्डेय
इस मिट्टी का कुछ कर्ज है मुझपर
जन्म इसी में फिर लेना होगा,
कतरा - कतरा लहु से अपने
इस धरती को सींचना होगा।
आन -बान और शान के लिए
चाहे मुझे फिर मिटना पड़े,
छाप छोड जाऊँगा ऐसी कि
दुश्मनों को फिर डरना होगा।
गर्व मुझे अपनी इस माटी पर है
जिससे देह यह मेरा बना,
हिम्मत और जज्बातों से मिलकर
लहु है मेरे रगो में बहा।
माँ तेरे आँचल की है सौगन्ध
दाग ना इसमें लगने दूँगा,
लू जब भी मैं जन्म धरा पर
तुझे कोख में अपनी मुझे रखना होगा।
इस मिट्टी का कुछ कर्ज है मुझपर
जन्म इसी में फिर लेना होगा,
कतरा - कतरा लहु से अपने
इस धरती को सींचना होगा।।
- शाम्भवी पाण्डेय
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