Happiness,प्रसन्न रहने के उपाय,संभव,शाम्भवी पाण्डेय
इच्छा और आवश्यकता में बहुत बड़ा अंतर होता है। बहुत से लोग दोनों ही शब्दों का एक ही रूप में प्रयोग करते हैं।
इच्छा क्षेत्र बहुत ही बड़ा है जबकि आवश्यकता क्षेत्र सीमित है। हम बहुत सी वस्तुएं देखकर आकर्षित होकर उसकी इच्छा करने लगते हैं, ऐसी ही एक इच्छा हमारी आवश्यकता भी है।
अंतर सिर्फ यह है कि आवश्यकता केवल ऐसी इच्छा है जिसके बिना हम नहीं रह सकते, जिसके लिए हमारे पास पर्याप्त साधन हैं और जिसे पाने से हमारी संतुष्टि हो सकती है।
कुछ आवश्यकताएँ पैसों से और कुछ उसके बिना भी पूरी हो सकती है। अनेक बार पैसों की कमी श्रम द्वारा पूरी हो जाती है।
आवश्यकता और उद्योग का घनिष्ठ संबंध है। हम जितनी ही अपनी आवश्यकताएं बढ़ाएंगे उतना ही उद्योग, परिश्रम और कष्ट हमें रहेगा है। यदि हमारी आवश्यकताएं थोड़ी है तो हम आसानी से थोड़े ही रुपए और मेहनत से संतुष्ट हो सकते हैं लेकिन अगर हमारी आवश्यकताएं ज्यादा है तो हमें रुपए बढ़ाने के लिए उद्योग के माध्यम से अपनी मेहनत को और भी बढ़ाना होगा।
जो व्यक्ति असंयमी है या फिर फैशनपरस्त हैं जिन्होंने अपनी आवश्यकता में वृद्धि कर ली है किंतु उद्योग और श्रम में नहीं, फलस्वरुप उनका जीवन संकट में है।
स्रोत: - ‘ पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य ‘
“अखंड ज्योति”
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