फील्ड मार्शल सैम मानेकशा | संभव ,शाम्भवी पाण्डेय

फील्ड मार्शल सैम मानेकशा एक परिचय ,पृष्ठभूमि,  सेना में प्रवेश-युद्ध

देश के सबसे सशक्त आर्मी चीफ और पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशा आज भी देश और सेना के जवानों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। 


उनकी बहादुरी के कारण उन्हें सैम बहादुर के तौर पर भी संबोधित किया जाता है। चार दशक के करियर में वह द्वितीय विश्व युद्ध समेत पांच युद्ध का हिस्सा बने।


इनमें वर्ष 1971 में हुए भारत पाकिस्तान युद्ध में वह महानायक के तौर पर उभरे। उनके जज्बे और अनसुनी कहानियों को बड़े पर्दे पर लाने की तैयारी कर रहीं मेघना गुलजार ने फिल्म 'सैम बहादुर' बनाने की घोषणा की है। 


पृष्ठभूमि,  सेना में प्रवेश-


भारतीय सेना के गौरवशाली इतिहास का अंग रहे सैम मानेकशां का पूरा नाम होरमुसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशा था। 


उन्होंने अपने कार्य, ओजपूर्ण व्यक्तित्व और प्रतिभा के बल पर अपना  लोहा मनवाया। छह भाई-बहनों में पांचवें नंबर के सैम बचपन से ही बहुत शरारती थे। सैम पिता की तरह डाक्टर बनना चाहते थे मगर उनकी पढ़ाई के - खर्च को वहन करना ही पिता के लिए आसान नहीं । था। सो, उन्होंने सैम का दाखिला अमृतसर के सभा कालेज में करा दिया।


 साल 1932 में अंग्रेजों ने सेना में भर्ती होने के इच्छुक युवाओं के लिए देहरादून में इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आएमए) की स्थापना की। मां से पैसे लेकर सैम दिल्ली में आइएमए की परीक्षा देने गए। मेरिट सूची में उनका नाम छठवें स्थान पर था।


एक अक्टूबर, 1932 को उन्हें बतौर जेंटलमैन कैडेट  इंडियन मिलिट्री अकेडमी में भर्ती किया गया। बेहतरीन खिलाड़ी होने के साथ ही सैम अच्छे बाक्सर और लीडर थे।


इंदिरा गांधी (प्रधानमंत्री ) का आदेश किया खारिज


अप्रैल 1971 के आखिर तक जब सभी कूटनीतिक प्रयास विफल हो गए, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनका कैबिनेट चाहता था कि पाकिस्तान के खिलाफ तुरंत आक्रामक कार्रवाई की जाए। 


हालांकि एक सेनापति के रूप में सैम जानते थे कि आधी-अधूरी तैयारी के साथ जंग के मैदान में उतरना ठीक नहीं. होगा। 


तब सेनापति सैम ने तत्काल युद्ध के लिए स्पष्ट मना करते हुए इंदिरा गांधी को बताया कि -


"भारतीय आर्मर्ड डिवीजन के पास 189 में सिर्फ 11 टैंक युद्ध के लिए तैयार हैं। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि मानसून शुरू होने वाला है, जब बाढ़ एक बड़ी समस्या बन जाती।"


 'फील्ड मार्शल सैम मानेकशाः ए मैन एंड हिज टाइम्स' किताब के. मुताबिक, सैम ने इंदिरा गांधी को 1962 के युद्ध में (तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की नीतियों की वजह से) चीन से हुई हार का हवाला भी दिया। नतीजतन गुस्से में आई इंदिरा गांधी के मिजाज को भांपते हुए सैम ने पूछा कि आप मेरा त्यागपत्र स्वास्थ्य, मानसिक या शारीरिक, किस आधार पर स्वीकार करेंगी? तब इंदिरा गांधी ने त्यागपत्र को ठुकराकर उनसे आगे की योजना बनाने को कहा तो सैम मानेकशा ने दो टूक कहा कि यदि उपाय के तौर पर युद्ध ही अंतिम विकल्प होगा तो यह उनके आह्वान पर होगा और वह सिर्फ प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करेंगे।


ऐतिहासिक युद्ध


इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर सबसे अहम सैन्य समर की तैयारियां शुरू हुईं। 30 नवंबर, 1971 को सैन्य संचालन के कार्यवाहक निदेशक मेजर जनरल इंदर गिल को संदेश मिला कि पाकिस्तान हमले की तैयारी में है। 


तीन दिसंबर, 1971 को अपराह्न 3.50 बजे 5 पाकिस्तान वायु सेना ने श्रीनगर से जोधपुर तक भारतीय हवाई क्षेत्रों पर लगातार 11 हमले किए। यह सैम के युद्ध कौशल का नतीजा था कि 16 दिसंबर को भारतीय सेना के इतिहास की सबसे बड़ी घटना हुई, जब 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने हथियार डाल दिए। 


भारत ने पाकिस्तान को पूर्वी व पश्चिमी दोनों ही मोर्चों पर मुंहतोड़ जवाब दिया था। युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ।


 युद्ध के ही करीब दो साल बाद

तीन जनवरी, 1973 को राष्ट्रपति वी.वी. गिरी ने सैम मानेकशा को फील्ड मार्शल का तमगा दिया। इस तरह भारतीय सेना को पहला के फील्ड मार्शल मिला।


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