पेरेंटिंग, मातृत्व और संस्कारों की आवश्यकता, बच्चों में अच्छे संस्कार क्यों दे ,कैसे दें ?
एक कहावत है कि
The child is as old as his ancestors . द चाइल्ड एज एज ओल्ड एज हिस आंसेस्टर्स ,अर्थात बच्चा उतना ही पुराना होता है जितना उसके पूर्वज |
यह कहावत इस संदेश की तरफ इशारा करती हैं कि बच्चा केवल अपने मां-बाप का ही दर्पण नहीं होता अपितु उसमें उसके पूर्वजों के भी गुणों का समावेश होता है| इसी कारण कई बार बच्चे में मां बाप के अलावा दादा-दादी, नाना-नानी या परदादा आदि के भी गुणों का समावेश दिखाई देता है| इसलिए अपने
बच्चों को श्रेष्ठ एवं पराक्रमी बनाने के लिए पेरेंटिंग, मातृत्व और संस्कारों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारतीय संस्कृति और संस्कार -
भारतीय संस्कृति का मानना है कि बच्चों में संस्कारों एवं चेतनाओं का बीजारोपण जन्म के बाद नहीं अपितु जन्म के पूर्व से ही प्रारंभ हो जाता है | इसी कारण भारतीय मनीषियों ने गर्भाधान एवं गर्भधारण के लिए भी विशेष अवसरों के महत्व को रेखांकित किया है; साथ ही गर्भधारण के पश्चात संस्कारों के महत्व पर बताया है ।
गर्भाधान एवं पुंसवन संस्कार बच्चे के गर्भ में आने के पश्चात ही किया जाता है ,जिसका उद्देश्य जहां एक तरफ माता-पिता को उनके भविष्य की जिम्मेदारियों से अवगत कराना है , वहीं दूसरी तरफ माता-पिता को आने वाले बच्चे की तैयारी हेतु सचेत भी करना है|
हम सभी ने महाभारत काल के अभिमन्यु के द्वारा 6 चक्रों के द्वार पार करने की कथा को बचपन से ही सुनते आ रहे हैं | सुभद्रा के गर्भ में स्थित बालक अभिमन्यु माता पिता के आपसी संवाद से चक्रवुह्य भेदने की कला सीखता है |
यह कहानी गर्भावस्था और बच्चे के जन्म के बीच गर्भस्थ शिशु के विकास की प्रक्रिया के वैज्ञानिक पक्ष को इंगित करती हैं |
गर्भावस्था में संस्कार की शुरुवात कैसे करें ?
भारतीय संस्कृत के मनीषियों ने इस तथ्य को समझा था इसीलिए वे मानते थे कि
आप अपनी संतान को जिस रूप में प्राप्त करना चाहते हैं, उसे जैसा बनाना चाहते हैं, उसे जैसे संस्कार देना चाहते हैं, इसका प्रारंभ गर्भधारण के समय के पश्चात से प्रारंभ हो जाता है।
गर्भावस्था के दौरान मंत्रों का जाप, धार्मिक ग्रंथ और ज्ञानवर्धक किताबें पढ़ना ,एवं संगीत सुनना चाहिए | अच्छे विचारों का ही सोचना और उनकी ही चर्चा करनी चाहिए| यह बच्चे के दिमाग पर एक छाप छोड़ता है जो बड़े होने पर बच्चे के स्वभाव में शामिल हो जाते हैं |
बच्चे में संस्कार कैसे डालें ?
जन्म पश्चात माता-पिता को बच्चे का प्रथम गुरु एवं परिवार को प्रथम विद्यालय माना जाता है और बच्चा माँ के पास सर्वाधिक रहता है | इसीलिए माँ को पिता की तुलना में विशेष स्थान दिया गया है और माना जाता है कि माँ ही बच्चे की प्रथम अध्यापक है |
माँ बच्चे में जिस प्रकार के विचार एवं संस्कार का बीजारोपण करती है | वही विचार बच्चे मे आगे चलकर, उन्हीं गुणों की वृद्धि कर उसे श्रेष्ठ बनाते हैं |
बचपन में दिया जाए संस्कार चरित्र और आदत ही बालक में चारित्रिक प्रौढता लाते हैं |
रोज सुबह जग कर भगवान ,माता पिता एवं अन्य बड़े सदस्यों को प्रणाम करें| बच्चों के मनोभाव को समझ कर अच्छे व्यवहार करने में उनकी मदद करें | स्वयं सभी का आदर करें और बच्चों को भी प्रेरित करें|
इसी कारण माता-पिता तथा परिवार को अपनी इस जिम्मेदारी से अवगत हो बच्चों के सर्वांगीण विकास चरित्र निर्माण संस्कार निर्माण हेतु कार्य करने की जरूरत वर्तमान समय में विशेष रूप से प्रासंगिक हो गई है।
संस्कार निर्माण का बेस्ट उदाहरण शिवाजी महाराज -
हम सभी ने शिवाजी के चारित्रिक निर्माण एवं उनके इस निर्माण में उनकी मां जीजाबाई के योगदान को भली-भांति जानते हैं| यही संस्कार ही शिवाजी को अन्य राजाओं से अलग करते थे |
शिवाजी से जब एक बार उनके सेनापति ने पूछा
महाराज ! पराजित राजा की पत्नी ,बेटी एवं अन्य महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार किया जाए” | तो उन्होंने तुरंत कहा कि जैसे हम अपनी मां ,बहन और बेटी के साथ व्यवहार करते हैं, ठीक वैसा ही व्यवहार उनके साथ किया जाना चाहिए।
आज के समय में संस्कारों की प्रासंगिकता
आज के समय में निश्चित ही यह विचार पुराने या घिसे-पिटे नजर आते हैं |परंतु बच्चों के द्वारा बढ़ती आपराधिक घटनाओं उनके दोस्तों और दुर्गुणों की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए आज यह बेहद प्रासंगिक है कि किस प्रकार हम अपने बच्चों को संस्कार दें | उनमें अच्छी आदतों का विकास करें , जिससे बच्चे उन मार्ग पर चल सके जो परिवार माता पिता समाज के लिए गर्व का आधार बन सके।
1 टिप्पणियाँ
शांभवी जी आपने एकदम ठीक लिखा है बहुत अच्छा लिखा है इसलिए हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम अपने संस्कारों को अच्छा बनाए ताकि हमारे आने वाली पीढ़ियों की पीढ़ियों के भी संस्कार अच्छे हो
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। जिससे हम लेख की गुणवत्ता बढ़ा सकें।
धन्यवाद