बच्चों में संस्कार किस उम्र से सिखाना चाहिए ?
एक बार एक मनीषी से एक महिला ने पूछा कि स्वामी जी मेरा बेटा 4 साल का है , उसकी शिक्षा कब से प्रारंभ किया जाए। तो मनीषी जी ने बताया कि आप बच्चे को शिक्षा देने में 4 साल 9 माह पीछे रह गई । महिला बातें समझ नहीं पाई और पूछी कि आप क्या कहना चाह रहे हैं ? तो शिक्षक ने बताया कि
बच्चे की शिक्षा तो बच्चे के मां के गर्भ में आने के पश्चात ही प्रारंभ कर देना चाहिए। इसी विचार के दृष्टिगत ही भारतीय संस्कृति में गर्भाधान के पश्चात ही संस्कारों का प्रारंभ किया गया है।
गर्भावस्था में संस्कार क्यों और कैसे ?
बच्चा जब मां के गर्भ में आता है तो माता के वह क्रियाकलाप ही नहीं अपितु मानसिक विचार और संस्कारों को भी सीखता है।
चूंकि बच्चे का निर्माण मां के शरीर में रहता है इसीलिए मां के रहन-सहन,मानसिक विचार, संस्कार , बोली ,भाषा, व्यवहार का सूक्ष्म प्रभाव बच्चे पर सतत पढ़ता रहता है।
घर की दादी, नानी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान अपने को अच्छे विचारों से जोड़ने , ज्ञानवर्धक साहित्य, रामायण आदि प्रेरक साहित्य पढ़ने तथा अपने भोजन को पौष्टिकता एवं सात्विकता से जोड़ने के लिए समझाती हैं। गर्भावस्था के दौरान मंत्रों का जाप, रामायण आदि धार्मिक ग्रंथ और ज्ञानवर्धक किताबें पढ़ना ,एवं शांति प्रिय संगीत सुनना चाहिए | अच्छे विचारों का ही मनन ,चिंतन और उनकी ही चर्चा करनी चाहिए | यह बच्चे के दिमाग पर एक सकारात्मक छाप छोड़ता है
दादी नानी बताती हैं की तनाव नहीं लेना है ,अच्छे विचार रखना है, क्योंकि यह सब बच्चे को प्रभावित करते हैं ।
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अभिमन्यु के गर्भ में सीखने की कथा
महाभारत काल में सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु ने अपनी माँ के गर्भ में ही चक्रव्यूह भेदन की कला माता और पिता के संवाद में सीखी थी; परंतु सातवें चक्रव्यूह भेदन के पूर्व ही मां सुभद्रा के नींद में आने के कारण गर्भ में स्थित अभिमन्यु उस ज्ञान को प्राप्त नहीं कर सका।
इसलिए गर्भावस्था के दौरान परिवार में अच्छे विचारों एवं अच्छे संस्कारों का ध्यान हमेशा रखा जाना चाहिए।
जन्म पश्चात बच्चे में संस्कार क्यों और कैसे ?
जन्म के पश्चात भी बच्चा मां के सर्वाधिक करीब रहता है । इसीलिए मां को बच्चे का प्रथम गुरु माना जाता है।
मां के करीब रहने के कारण बच्चा अपने मां के क्रियाकलापों की नकल करता है । पारिवारिक वातावरण, माता पिता के स्नेहमयी वार्तालाप, वातावरण, सामाजिकता और परिवार के संस्कार का प्रभाव बच्चे पर सीधा पड़ता है ।
जिन घरों में मां-बाप में झगड़ा झंझट होते रहता है वहां बच्चों के मस्तिष्क में युद्ध जैसे हालात उत्पन्न होते हैं । वह बच्चा लाइफ टाइम उसी आधार को लेकर अपने विचारों को दृढ़ करता है। जबकि सदभावना का जिन घरों में वातावरण रहता है वहाँ बच्चे सकारात्मकता सीखते हैं और वही उनके व्यवहार में शामिल हो जाता है।
बढ़ती उम्र बच्चे में संस्कार क्यों और कैसे ?
उम्र बढ़ने के साथ-साथ बच्चा अनुकरण के साथ ही साथ चीजों को जानने और सीखने में रुचि पैदा करते हैं । बच्चा अभी तक जिन चीजों को तोड़ना फोड़ना करता था, अब उनको ठीक से चलाना और उसके बारे में समझना चाहता है । मैंने अपने घर में देखा कि छोटा बच्चा जब अपने पिता से बात करता है तो शुद्ध हिंदी में बोलने का प्रयास करता है लेकिन जब वह अपनी बूढ़ी दादी से बात करता है तो उनसे उनकी लोकल भाषा अवधि में बोलता है। यहां पर बच्चे को किसी ने सिखाया नहीं अभी उसने अपने परिवेश से ही सारी चीजें सीखी।
इस समय बच्चे की जिज्ञासा को दबाने का स्थान पर उनको नई-नई चीजें सिखाने, महापुरुषों की जीवनी से शिक्षा देने, प्रेरक कहानी , पंचतंत्र की कहानी आदि सुनानी चाहिए और उस कहानी से प्राप्त होने वाली शिक्षा को अवश्य बताना चाहिए क्योंकि यही शिक्षा धीरे-धीरे बच्चे के अवचेतन मन में अपना स्थान बना लेते हैं।
यही आदतें एवं शिक्षाएं बच्चे को प्रौढ़ करते हैं। हमें अपने धार्मिक ग्रंथ जैसे रामायण इत्यादि में पारिवारिक आदर्श , भातृत्व प्रेम, महिलाओं के प्रति सम्मान, सभी वर्गों के समानता ,बड़ों का सम्मान आदि बातें बच्चों को उदाहरण के साथ समझाना चाहिए ।
पैसे में किया गया निवेश समय पर फलीभूत होगा या नहीं यह कोई निश्चित रूप से नहीं कह सकता। लेकिन बच्चों में किया गया निवेश , उनको सिखाएं गये संस्कार, बनाई गई आदतें, उनका व्यवहार ,बच्चो को दिया गया समय निश्चित ही जीवन को सुख संपन्नता और समृद्ध से भर देता है।
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