फौजी की पत्नी का इंतजार- एक कविता, शाम्भवी पाण्डेय |
आज हम सभी लोग अपने-अपने घरों में सुरक्षित रूप से अपने परिवार के साथ जीवन के आनंद ले रहे हैं, अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं तो इसका श्रेय जाता है उन वीर जवानों को जो भारत की सीमाओं को बाहरी और भीतरी खतरों से सुरक्षित रखे हैं।एक सलूट हमारा देश की सेवा में लगे हुए आर्मी और पुलिस के उन जवानों को है जो अपने घर परिवार से दूर रहकर देश की सुरक्षा में दिन रात तत्पर हैं।
आज यहां एक कविता के माध्यम से एक फौजी की पत्नी के इंतजार और उसके कर्तव्यों की मंथना व्यक्त कर रही हूं……
फौजी की पत्नी का इंतजार- एक कविता,
उलझ गए नैना
तेरे आने के राह में,
जैसे सूखा पड़ा है सावन
बारिश के इंतजार में।
प्रियतम मेरे कब आओगे
यही सांसे मुझसे पूछती हैं,
उतरे चेहरे की मुस्कुराहट
सिर्फ तेरा रस्ता देखती हैं।
उम्मीद लगा रखा है दिल
दरवाजे पर दस्तक की,
शायद अचानक से तुम आजाओ
सुलझ जाए उलझन जीवन की।
शायद इस बार फोन पर
तुम आने की बात कहोगे,
या फिर मेरे धैर्य का
और इम्तिहान लोगे।
फिर बैठ समझाती मैं खुद को
क्या जिम्मेदारी हमारी है,
मुझसे पहले भी जरूरत
मातृभूमि को तुम्हारी है।
तुम पहले पुत्र,फिर पति
उसके बाद हो पिता बने,
अपने कठिन कर्म योग से
जिसके आदर्श हो बने।
अपनी छवि चाहे दागी हो पर
मां के आंचल पर दाग ना लगने देना,
मैं करती रहूंगी इंतजार यूंही
बस मेरा इंतजार खतम कर देना।
- शाम्भवी पाण्डेय
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