जीवन का अनमोल रत्न "प्रेम" - एक कविता
कहते हैं जिसे प्रेम हम।
जिसे मिल जाए वो मालामाल,
जो खो दे वो हो जाए कंगाल।
प्रेम जाने आंखो की भाषा,
प्रेम समझे प्रेम की परिभाषा,
दिल से दिल तक जाने वाली,
अति सूक्ष्म तरंग है प्रेम।
प्रेम है जीवन, प्रेम मरण,
प्रेम से है सासों का चलन,
कहीं प्रेम है सागर,
तो कहीं प्रेम बन जाए भँवर ,
प्रेम जिसकी पहचान बन जाए,
वो नर जग प्रेमी कहलाए।
प्रेम से हो जीवन में उथल-पुथल,
प्रेम से हो जीवन संचलन,
धूप-छाव का अहसास है प्रेम,
सुख-दुख का गांव है प्रेम।
मगर प्रेम ना सीमित खुद में,
प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी में,
प्रेम तो भक्त-भगवान से करते,
माता-पिता बच्चों से करते,
भाई-बहन का प्रेम जगव्यापक,
उम्र की सीमा से परे सब।
कुछ रिश्ते दिल के भी होते,
आत्मीयजन जिन्हें हम कहते,
प्रेम ना सीमित मनुष्यों तक होती,
पशु पक्षी हर जीव में यह होती।
समझने को केवल बोध चाहिए,
अंतर्मन में एक शोध चाहिए,
एक प्रेम के लिए अन्य प्रेम को ना छोड़ो,
नाता ना कभी अपनों से तोड़ो।
प्रेमी बनो स्वभाव से अपने,
हर रिश्ते में प्रेम भरो,
और बने जो पति-पत्नी वो भी,
प्रेमी-प्रेमिका सा प्रेम करो।
जीवन का सबसे अनमोल रत्न,
देखो,समझो,पहचानो,
संजो लो जीवन की मणियों को,
कहते हैं जिसे प्रेम हम ।।
- शाम्भवी पाण्डेय
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