प्रकृति की प्रार्थना
ऐ वक्त यह कैसा दौर है तेरा,
कितनी तबाही खुद में समेटा है,
अंजाम क्या होगा कुछ पता नहीं,
जाने क्या भाग्य का लेखा है।
कहीं तूफान उठे,कहीं आग लगी,
हर घर-घर फैली महामारी है,
बारिश बनके यह प्रकृति भी रोए,
यह प्रलय लीला हुई बड़ी भारी है।
बच्चे,बूढ़े,नौजवान,
हर किसी पर विपदा आई है,
चारों तरफ चित्कार उठी,
कितनी मची यह तबाही है।
सुन के रूदन और करुण पुकार,
वक्त तेरी भी आंखें डिमडिमाई है,
अब करे प्रार्थना वक्त प्रभु,
दुनिया तेरी शरण में आई है।
एक आस तुम्ही से प्रभु हमारी,
सुन लो इस हाहाकार को,
कर दो कृपा हे दीनानाथ,
रोको इस विनाश को।।
- शाम्भवी पाण्डेय
लेखिका द्वारा रचित अन्य कविताएँ -
3 टिप्पणियाँ
बहुत ही सुंदर रचना है
जवाब देंहटाएं👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। जिससे हम लेख की गुणवत्ता बढ़ा सकें।
धन्यवाद