Father's Day 2024, एक बेटे का पिता को लिखा गया पत्र -एक कविता

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नन्हे नन्हे जब थे मेरे कदम,

मुझे चलना तुमने था सिखलाया,

हर डगर पर मेरे साथ रहें,

फिर सम्भलना मुझको सिखलाया |


खेल खिलौने खूब मिठाई,

लेकर घर जब आते थे,

गले लगा के लाड लगाते,

फिर घूमाने हमें ले जाते थे |





न जाने कब मैं बड़ा हो गया,

संग में घूमना फिरना छूट गया,

समझ के खुद को होशियार,

अनुशासन को भी भूल गया |


हर बात में तेरा मुझको टोकना,

अब बड़ा बुरा मुझे लगने लगा,

कुछ अपने जैसे दोस्तो के संग,

संस्कार को भी मैं भूल गया |


खुद पर जब जिम्मेदारी आयी,

लडखड़ाते कदम सम्भल गये,

पहले पति फिर पिता बना,

नये नाते मुझसे जुड़ गये |


अब पापा-पापा कहकर,

जब मेरा बच्चा दौड़ता है,

मेरे अन्दर का बच्चा भी,

बचपन में लगाता गोता है |


अब उसका आँख दिखाना मुझे,

कितना बेचैन करता है,

पापा तुमने कितना कुछ सहा,

ये सोच के अब दिल रोता है |


हो सके तो मुझे मॉफ कर देना,

तेरा दिल मैने जो तोड़ा है,

इस दिन से ही सब सीखा मैनें,

यह वक्त और उम्र का धोखा है |


एक बार फिर से ऊगली पकड़,

सही राह मुझे दिखलाना,

हो सके तो मुझको पास बिठा,

जीवन का पाठ सिखलाना।


             -शाम्भवी पाण्डेय 





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