रेल गाड़ी, रेल गाड़ी-एक कविता
रेल गाड़ी-रेल गाड़ी
छुक-छुक चलती रेल गाड़ी,
प्लेटफॉर्म पर जब ये आए
उससे पहले हॉर्न बजाए ।
बच्चे दौड़े, बूढ़े दौड़े
समान अपना सब लेकर दौड़े,
छूट ना जाए डर लगती है
रेल यात्रा बड़ी अच्छी लगती है ।
खिड़की वाली सीट पर बैठें
बाहर की दुनिया नए नजर से देखें,
साथ में खाने को मिलती है
कहीं समोसा कहीं मिठाई ।
ऊपर-नीचे सीट पर कूदें
बच्चे कभी स्थिर ना बैठें,
बड़ी उक्सुक्ता, बड़ी जिज्ञासा
नए नए सवाल हैं पूछें ।
सरपट दौड़ती पटरियों पर ट्रेनें
कौन सा स्टेशन आया है देखें,
कब आएगी अपनी बारी
उतरने की होगी परमिशन जारी ।
देखो कौन सा स्टेशन आया
मिलने यहां कोई तुमसे आया,
ट्रेन में जो भी मिलने आया
खाने को कुछ चीजें लाया ।
अजनबियों से कुछ ना लेना
याद दिलाए यह हर पल रहना,
धीरे से वो ट्रेन का झटका लगना
गिर ना जाए डरते रहना ।
सावधान हर पल है रहना
चोर उचक्कों से भी बचना,
खूब मस्ती करते करते
फिर अपने गन्तव्य पहुंचना ।
रेल में तुम जब भी जाना
अपने सामान को मत विसराना,
ऐसी होती रेल गाड़ी
देश की जोड़े जनता सारी ।।
- शाम्भवी पाण्डेय
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12 टिप्पणियाँ
अच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भैया।
हटाएंGood
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंअति सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंToo sensible...lovely 👍
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंToo sensible....lovely 👍
जवाब देंहटाएंDhnywad
हटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। जिससे हम लेख की गुणवत्ता बढ़ा सकें।
धन्यवाद