रेल गाड़ी, रेल गाड़ी-एक कविता

रेल गाड़ी, रेल गाड़ी-एक कविता 

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रेल गाड़ी-रेल गाड़ी

छुक-छुक चलती रेल गाड़ी,

प्लेटफॉर्म पर जब ये आए

उससे पहले हॉर्न बजाए ।


बच्चे दौड़े, बूढ़े दौड़े

समान अपना सब लेकर दौड़े,

छूट ना जाए डर लगती है

रेल यात्रा बड़ी अच्छी लगती है ।


खिड़की वाली सीट पर बैठें

बाहर की दुनिया नए नजर से देखें,

साथ में खाने को मिलती है

कहीं समोसा कहीं मिठाई ।


ऊपर-नीचे सीट पर कूदें

बच्चे कभी स्थिर ना बैठें,

बड़ी उक्सुक्ता, बड़ी जिज्ञासा

नए नए सवाल हैं पूछें ।


सरपट दौड़ती पटरियों पर ट्रेनें

कौन सा स्टेशन आया है देखें,

कब आएगी अपनी बारी

उतरने की होगी परमिशन जारी ।


देखो कौन सा स्टेशन आया

मिलने यहां कोई तुमसे आया,

ट्रेन में जो भी मिलने आया 

खाने को कुछ चीजें लाया ।


अजनबियों से कुछ ना लेना

याद दिलाए यह हर पल रहना,

धीरे से वो ट्रेन का  झटका लगना 

गिर ना जाए डरते रहना ।


सावधान हर पल है रहना

चोर उचक्कों से भी बचना,

खूब मस्ती करते करते

फिर अपने गन्तव्य पहुंचना ।


रेल में तुम जब भी जाना

अपने सामान को मत विसराना,

ऐसी होती रेल गाड़ी

देश की जोड़े जनता सारी ।।



        - शाम्भवी पाण्डेय



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