संभव (shambhav ) "असम्भव तो कुछ भी नहीं" - कविता

                         



असंभव तो कुछ भी नहीं 

असंभव  तो कुछ भी नहीं
तेरे चाहत भर की देरी है|
कर इरादा पक्का अपना
बस जागने भर की देरी है||

अब उठ तू और जाग जा

भर हौसलो की उड़ान को,

असंभव को संभव कर देना 

यही जिद तेरी पहली है।


झोंक दें सारी ताकत अपनी

दिखा दे सारे जहान को,

किस्मत अपनी बदल सकता है

बड़ी प्रबल तेरी इच्छाशक्ति है।


वक्त भरोसे न बैठेगा तू

मेहनत पर अपनी भरोसा कर,

साध निशाना लक्ष्य पर सीधा

तेरी अर्जुन की सी दृष्टि है।


कुछ तो बात खास होगी तुझमे

कभी अपने अन्दर झाँक तू,

ले गोते मन के सागर में

कहीं छुपी सीप में मोती है।


कुछ खोऐगा, कुछ पायेगा

कुछ इसमे व्यर्थ जाऐगा,

हौसला तेरा रोज बढेगा

आत्मविश्वास में बड़ी शक्ति है।


एक प्रयास तुम्हारा होगा

प्रकृति सहयोगी बन जाएगी,

देख तेरे परिश्रम को

तुझे साहिल तक ले जाएगी।


अब उठ और बढ जा एक कदम

क्यों करता इसमें देरी है,

असंभव को संभव कर देना

होगी जीत तेरी यह पक्की है।।



                - शाम्भवी पाण्डेय


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