श्रीकृष्ण के उपदेश, शिक्षाएं, गीता के उपदेश, संभव, शाम्भवी पाण्डेय
भारतीय संस्कृति में श्रीकृष्ण का चरित्र अद्भुत है । अनेक गाथाओं में उनके चतुर्मुखी व्यक्तित्व और प्रतिभा का विलक्षण रुप चित्रित किया गया है ।
अपने इस अवतार में भगवान श्री कृष्ण कई रुपों में अपनी लीलाएं दिखाते हैं कभी वें बाल कृष्ण के रूप में पूतना और ताड़का आदि का वध किए तो कभी ग्वालों के साथ गाय चराते हुए गोपाल रूप में लीला किए ।
जहां एक तरफ वे गुरु संदीपनी के शिष्य बनकर गुरुदीक्षा में गुरु के मृत पुत्र को यमराज से मुक्ति कराकर ले आए थें वही दूसरी तरफ सखा रूप में कृष्ण - सुदामा की मित्रता के चर्चे जग व्याप्त हैं ।
भगवान श्री कृष्ण के प्रेम रूप में वर्णित रासलीला का वर्णन पुराणों में तो मिलता ही है साथ ही आज के युग में भी जन्माष्टमी की अवसर पर रंगमंच पर सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में प्रेमस्वरूप प्रभु की रासलीला का भी दर्शन मिलता है ।
श्री कृष्ण कर्मयोगी भी हैं, श्रीकृष्ण धर्म योगी भी, वें रक्षक भी हैं, वे योगेश्वर भी हैं, मार्गदर्शक भी हैं, समर्थ प्रबंधक भी हैं ।
परंतु श्री कृष्ण की कूटनीतिज्ञ सूझ-बूझ अन्य सब प्रतिभाओं में सर्वोपरि है । भगवान अपने संपूर्ण जीवन में कूटनीति के बल पर परिस्थितियों को अपने अनुरुप ढाल कर भविष्य का निर्माण करते थे ।
महाभारत कथा, गीता के उपदेश एवं भगवान श्री कृष्ण के जीवन चरित्र से हम उनके द्वारा अपनाए गए महत्वपूर्ण गुणों से परिचित होते हैं । भगवान श्री कृष्ण की नीतियों से हमें अपने जीवन को सफलता की सीढियों पर आगे बढ़ाने के लिए अनेक शिक्षाएं मिलती हैं । उनकी कुछ प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं-
1-लक्ष्य का निर्धारण:
अपनी रुचि, क्षमता तथा यथास्थिति को देखते हुए अपने लक्ष्य का निर्धारण करें ।
2-कार्य की सुनियोजित योजना तैयार करें:
उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पूर्व में ही उस कार्य के लिए सुनियोजित योजना तैयार करें । पूर्व में की गई तैयारी ही हमारे कार्य को शीघ्र अति शीघ्र और सही दिशा में आगे ले जाती है ।
3-सकारात्मक तथा सृजनात्मक पर बल:
इस योजना में सकारात्मक तथा सृजनात्मकता के भाव पर बल दें तथा यह भी ध्यान दें कि हमारे द्वारा किया गया कार्य धर्मानुकूल हो ।
4-अपने समय व ऊर्जा को केंद्रित करें:
अपने कार्यों की जिम्मेदारी लें तथा अपने समय व ऊर्जा को उन क्षेत्रों में केंद्रित करें जो आपके प्रभाव क्षेत्र में आती हो ।
5-प्रबंधन:
उस कार्य से जुड़े सभी आवश्यक तत्वों का प्रबंध करें । निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप अपनी प्राथमिकताओं को समझें और उस कार्य को पूर्ण करना सुनिश्चित करें ।
6-क्षमताओं का नियोजन:
अलग-अलग क्षमता के लोगों के बीच उनकी क्षमताओं का नियोजन करें एवं सभी को जिम्मेदारी दें और सभी को सहयोगी बनाएं ।
7- मन पर नियंत्रण:
अपने मन पर नियंत्रण रखते हुए फल की इच्छा के बिना अपना कर्म पूर्णनिष्ठा, तत्परता, मेहनत व ईमानदारी के साथ करें ।
8-ईश्वर में पूर्ण विश्वास:
ईश्वर में आपका विश्वास अडिग होना चाहिए क्योंकि ईश्वर उस पतवार की तरह है जो भयंकर से भयंकर तूफान में भी हमारे जीवन की नाव को पार लगाने वाले हैं ।
9-भावनाओं पर नियंत्रण:
भावनाओं पर नियंत्रण होना भी अति आवश्यक है । अपने कार्य में हम सफलता भी पा सकते हैं और कभी असफलता भी । ऐसे में हमें अपनी भावनाओं पर काबू रखना जरूरी होता है जिससे किसी भी प्रकार के आवेश में आकर हम अहंकार या विषाद (क्रोध) से ग्रसित होकर कोई गलत कदम ना उठाएं ।
10-स्वयं का आकलन:
स्वयं का आकलन व सुधार यह एक प्रभावशाली तरीका माना जाता है । स्वयं का आकलन कर हम अपनी कमियों को जानकर उसमें सुधार कर प्रगति की ओर अग्रसर होने का प्रयास करते हैं ।
श्रीमद्भागवत गीता में जीवन की हर समस्या का समाधान छुपा है । गीता में वर्णित भगवान श्री कृष्ण की बातें आज के युग में भी जीवन में आगे बढ़ाने और सफलता पाने की प्रेरणा देती हैं ।
- शाम्भवी पाण्डेय
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