जीवन का उद्देश्य- एक कविता
ऐ आजाद परिंदे अभिमान कर अपनी किस्मत पर,
बहुत से तेरे जैसे आज भी पिंजरे में कैद है,
कुछ डर गए, कुछ मर गए, कुछ जीने को मजबूर हैं ,
कुछ प्रयत्नशील, कुछ प्रयत्न हीन , कुछ उदासी में सराबोर है|
एक झलक खुले आकाश की पाने को वह मचल गए,
एक सांस खुली हवा में लेने को वह तरस गए,
एक पंख था वो भी
उड़ना भूल गया डाल डाल पर जाने को,
हौसला भी अब टूट गया ऊंची उड़ान लगाने को।
तू कहता है यह सुखमय जीवन इसमें कोई फिक्र नहीं ,
तुझे एहसास नहीं उस जीवन की जिसमें कोई उमंग नहीं।
अब छोड़ इस अभिमान को अपना आधार तलाश तू,
उद्देश्य क्या है जीवन का इस पर कर विचार तू ||
- शाम्भवी पाण्डेय
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3 टिप्पणियाँ
प्रगतिवादी विचार
जवाब देंहटाएंDhnywad
जवाब देंहटाएंउत्तम विचार
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