श्रद्धांजलि - सीडीएस जनरल विपिन रावत
Tribute - CDS General Bipin Rawat
देश की सेवा में हर मोर्चे पर काबिलियत और अपनी क्षमता का लोहा मनवाने वाले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सीडीएस जनरल बिपिन रावत एक ऐसा नाम जो सख्त और साहसिक फैसले लेने के लिए विख्यात था । देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनने से पहले जनरल रावत थल सेना प्रमुख थे । बतौर थल सेना अध्यक्ष उनके सबसे महत्वपूर्ण मिशन में बालाकोट एयर स्ट्राइक शामिल है । बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर हमला कर उन्हें नष्ट करने के दौरान बतौर थल सेना अध्यक्ष उन्होंने रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई थी ।
बलिदान
8 दिसंबर 2021 तमिलनाडु में हेलीकॉप्टर हादसे में देश ने अपना सबसे बड़ा सैन्य अफसर खो दिया । जनरल बिपिन रावत एक उत्कृष्ट सैनिक और सच्चे देशभक्त थे, जिन्होंने सशस्त्र बलों और सुरक्षा प्रणाली के आधुनिकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया । दुर्भाग्यपूर्ण हेलीकॉप्टर हादसे में सीडीएस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और सशस्त्र बलों के अन्य 11 कर्मियों के असामयिक मृत्यु हमारे सशस्त्र बलों और देश के लिए अपूर्णीय क्षति है ।
देश ने आज एक कुशल योद्धा,अद्भुत रणनीतिकार और अनुभवी नेतृत्वकर्ता को खो दिया है । उनके अनुकरणीय योगदान प्रतिबद्धता को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता । यह देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है,भगवान उन्हें अपने चरणों में स्थान दें ।
दिसम्बर महीना - कमान से बलिदान तक
चीफ ऑफ डिफेंस जनरल बिपिन रावत के जीवन में दिसंबर माह काफी महत्वपूर्ण है । यह महीना उनके जीवन में कई प्रकार की उतार-चढ़ाव का साक्षी बना । 1978 में दिसंबर में ही जनरल रावत ने सेना में देश सेवा की कमान संभाली थी, दिसंबर में ही उन्हें सेना के उच्च पदों की जिम्मेदारी मिली है और दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि दिसंबर माह उनके बलिदान का भी साक्षी बना ।
सीडीएस जनरल बिपिन रावत भारतीय सैन्य अकादमी में प्री मिलिट्री ट्रेनिंग पूरी कर 16 दिसंबर 1978 को 11 वीं गोरखा राइफल्स की पांचवी बटालियन में बतौर लेफ्टिनेंट कमीशन हुए थे । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भी काम किया और अफ्रीकी देश कांगो में तैनात रहे ।
उन्हें दो बार फोर्स कमांडेड कमेंडेंशन भी मिला । 17 दिसंबर 2016 को प्रदेश के 27 वें थल सेना प्रमुख नियुक्त किए गए ।सेना प्रमुख के बाद देश के पहले सीडीएस बने जनरल रावत ने दिसंबर 2019 में यह पद संभाला था ।
जनरल विपिन रावत का जीवन
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में बिपिन रावत का जन्म हुआ था । इनके पिता एस रावत सेना से लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर थे । पिता के सेना में होने के कारण जनरल बिपिन रावत की शिक्षा -दीक्षा देश के विभिन्न शहरों में हुई । उन्होंने गढ़ी कैंट स्थित कैंब्रियन हॉल स्कूल में 1969 में कक्षा 6 में प्रवेश लिया, 1971 तक यहां पर पर शिक्षा ग्रहण किए इसके बाद पिता का स्थानांतरण हिमाचल प्रदेश में शिमला हो गया, आगे की पढ़ाई उन्होंने शिमला में की ।
देश की सेवा में हर मोर्चे पर अपनी काबलियत का लोहा मनवाने वाले जनरल बिपिन रावत अपने पैतृक गांव से भी बहुत लगाव रखते थे और कोटद्वार के पैतृक गांव मे मकान बनाकर वहां बसने के सपने को भी सजाए थे ।
वे अपने खाली हो चुके गांव को लेकर काफी गंभीर थे । साथ ही वन्य जीवों के कारण छूट रही खेती पर भी बहुत चिंतित है । रावत का कहना था कि ऐसी योजनाएं बनाएं जिससे गांव का पलायन रुक सके । उन्होंने उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखकर गांव को सड़क से जोड़ने का आग्रह भी किया ।
लेकिन 8 दिसंबर को हुए दुर्भाग्यपूर्ण हेलीकॉप्टर हादसे में जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी समेत सशस्त्र बलों के अन्य 11 वीर कर्मियों के असामयिक मृत्यु होने से कोटद्वार की पैतृक गांव में बसने काम का उनका सपना अधूरा रह गया ।
सीडीएस तक का सफर
जनरल बिपिन रावत ने जनवरी 1979 में सेना में मिजोरम में प्रथम नियुक्ति पाई थी ।
रावत ने भारतीय सैन्य अकादमी से स्नातक उपाधि प्राप्त की ।
आईएमए देहरादून में सोर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किए जा चुके हैं ।
साल 2011 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से सैन्य मीडिया अध्ययन में पीएचडी की ।
आर्मी के हथियारों को अपग्रेड करने के लिए स्टैटिक पार्टनरशिप मॉडल पर बिपिन रावत की निगरानी में ही काम चल रहा था ।
सेना के तीनों सेना-थल सेना, नौसेना,वायु सेना के बीच बेहतर समन्वय के लिए इंटीग्रेटेड थियेटर कमांड की योजना पर भी काम कर रहे थे ।
विनम्र श्रद्धांजलि
तमिलनाडु के पर्वतीय इलाके में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में चीफ ऑफ डिफेंस जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी समेत अन्य 11 सेन अफसर कर्मियों का निधन समूचे राष्ट्र को शोकाकुल करने वाली त्रासदी है । यह एक अपूर्णीय क्षति है ।
हर लिहाज से भरोसेमंद और दुर्गम परिस्थितियों में भी आजमाए हुए हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों की जांच अधिक गहनता से होनी चाहिए । वास्तव में भविष्य में ऐसे हादसे से बचने के लिए जो भी संभव हो वह सब प्राथमिकता के आधार पर किया जाना चाहिए ।
जनरल बिपिन रावत के रूप में देश ने अपने पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ को ही नहीं बल्कि एक अप्रतिम योद्धा को भी खोया है ।
वह जितने बहादुर थे उतने ही बेबाक थे । यह बात उनके जैसा कोई असाधारण योद्धा ही कह सकता था कि भारतीय सेनाएं ढाई मोर्चों पर लड़ने यानी चीन और पाकिस्तान के साथ देश में छुपे दुश्मनों का भी सामना करने में सक्षम है ।
देश ने कई पराक्रमी सैन्य अफसर को ऐसे समय में खोया है जब वह चीन की आक्रामकता का सामना करने की तैयारी को आगे बढ़ने के साथ अफगानिस्तान के हालात से उपजे चुनौतियों का जवाब खोजने में लगा हुआ है । देश उनके योगदान को भूल नहीं सकता । शौर्य के ऐसे पर्याय और प्रतीक शूरवीरों को विनम्र श्रद्धांजलि ।
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