बच्चों में करें अच्छी आदतों का विकास, संभव, शाम्भवी पाण्डेय

बच्चों में करें अच्छी आदतों का विकास, संभव, शाम्भवी पाण्डेय,baccho me kre acchee aadaton ka vikas


बच्चों में करें अच्छी आदतों का विकास (baccho me kren acchee aadaton ka vikas,संभव, शाम्भवी पाण्डेय, Develop good habits in children)


आदत, बिजली की शक्ति के समान तेज और शक्तिशाली होती हैं। मनुष्य अपनी आदत का एक खिलौना बन जाता है और उसी के आधार पर उसके भविष्य का निर्माण होता है कारण यह है कि उसे अपनी आदत के समान मित्र, साधन, विचार और अवसर बराबर प्राप्त होते रहते हैं। 

                   

Baccho me kre acchee aadaton ka vikas, संभव, शाम्भवी पाण्डेय

 

एक से आदत वालों में स्वाभाविक प्रेम और एक दूसरे के विरुद्ध आदत वालों में स्वाभाविक भिन्नता बिना किसी परिचय के ही पाई जाती है।


बचपन, बच्चे और उनके मनोविज्ञान की आज की श्रृंखला में हम चर्चा करेंगे किस प्रकार अपने बच्चों में अच्छी आदतों का विकास करें।


अच्छी आदतों का बीजारोपण:


बालक के शरीर की उत्पत्ति माता-पिता के शरीर से होती है। जैसी धातु गलाई जाएगी वैसा ही बर्तन बनेगा, जैसे ईंट -चूने का प्रयोग होगा वैसा ही मकान बनेगा । आप जैसे हो वैसे ही आप की संताने भी होंगी, उतनी ही अच्छी या बुरी होंगी जितने आपसे अच्छे या बुरे हैं। यदि माता-पिता के शरीर स्थूल या सूक्ष्म रोगों से ग्रसित हैं तो संतान पर भी उसका प्रभाव पड़ेगा।


वेश, भाषा, संस्कृति, रुचि, आहार-विहार, आचार - विचार आदि बातें भी बच्चे अपने मां बाप का ही अनुसरण करते हैं। छोटा बालक मां के गर्भ में ही इन बातों के बहुत कुछ संस्कार ग्रहण कर लेता है और जन्म के धारण के पश्चात उन बातों को सहज ही अपनाने लगता है। इस प्रकार शारीरिक और मानसिक दृष्टि से बालक 70% अपने जन्मदाता शरीरों की प्रतिमूर्ति होता है।


मनोवैज्ञानिक भी इस संबंध में विशेष शोध, अनेकों उदाहरण एवं प्रमाणों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यदि माता-पिता सद्गुणी, अच्छे स्वभाव के, कर्तव्यनिष्ठ, नीतिमान और धर्मात्मा है तो उनकी अपूर्णता और विकास की अन्य सुविधाओं के अभाव में भी बालक उत्तम शरीर और अच्छे मन वाले उत्पन्न होते हैं।


अच्छी आदतों का विकास:


पुरानी आदतें, नई आदतों के बजाय अधिक शक्तिशाली होती है। जब कभी आप नई आदतों का बीजारोपण करना चाहते हैं तो पुरानी आदतें उसमें बार-बार बाधा डालती है और नई आदत को बढ़ने से रोकती है, इससे वह नई आदत डालने वाला व्यक्ति घबराकर निराश हो जाता है और जब तक वह आदत के सिद्धांत और असलियत का अनुभव नहीं कर लेता बल्कि सोचता है कि वह बदनसीब है परंतु ऐसा सोचना भूल है।

 पुरानी आदतें जो आज इतनी प्रबल हो रही है 1 दिन में नहीं पड़ गई हैं काफी लंबे समय तक काफी दिलचस्पी के साथ अनेक बार उन्हें क्रिया रूप में परिणत किया गया है तभी आज इतनी मजबूत बन पाई है कि हमारे मन पर अधिकार जमा देने के लिए संघर्ष करती हैं। 


आप अच्छी आदत डालिए क्योंकि आदतों से ही मनुष्य की जीवनधारा का निर्माण होता है।


बच्चों में ऐसे करें अच्छी आदतों का विकास:


बालकों के जीवन को सफल बनाने और उनके मानसिक विकास को उपयुक्त रीति से अग्रसर होने के लिए पवित्र वातावरण की बड़ी आवश्यकता है। 


यह एक अटल सत्य सिद्धांत है कि जो मनुष्य किसी अन्य मनुष्य के साथ रहेगा तो उसकी भावनाओं का प्रभाव भी उस पर अवश्य पड़ेगा।

उन दोनों में से एक कोमल प्रकृति का हुआ तो वह दूसरे सबल व्यक्ति की भली -बुरी बातों से अवश्य प्रभावित होगा और उनको ग्रहण भी कर लेगा।


बालक का मन बड़ा निर्मल होता है, उनके मन में दृढ़ता नहीं होती। जब किसी व्यक्ति के प्रबल और अशुद्ध / चंचल विचार उसके अचेतन मन में घुस जाते हैं तो वे उसकी बड़ी क्षति कर डालते हैं।


तो आइए जाने वे सामान्य सी अनुसरण करने योग्य आचरण की बातें जिससे हम बच्चों में अच्छी आदतों का विकास आसानी से कर सकते हैं -


  • स्वयं अच्छे आचरण को अपनाएं।

  • बच्चों से अच्छे आचरण में व्यवहार करें।

  • बच्चों को समाज से जुड़ी सामाजिक बातें सिखाएं।

  • बच्चों के मन में उनके कार्यक्षेत्र की भावना और जिम्मेदारियों का एहसास कराएं।

  • उन्हें माता-पिता की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के विषय में जानकारी दें।

  • बच्चों को ऐसी शिक्षा प्रदान करें कि वे आप पर अनावश्यक रूप से निर्भर ना रहें अपितु स्वयं अपने हाथों से अपने कार्य संपन्न करते रहे।

  • बच्चों में स्वयं काम करने की आदत डाल कर आप उनमें आत्मविश्वास और स्वावलम्बन उत्पन्न करते हैं।

  • बच्चों में उत्तरदायित्व के विकास के लिए आवश्यक है कि उनसे घर के मामलों में राय ली जाए।

  • बच्चों को यह अनुभव कराएं कि घर में उनका स्थान बहुत महत्वपूर्ण है।

  • बच्चों में स्वाभाविक कल्पनाशीलता, रचनाशीलता एवं सृजनात्मकता की शक्ति को जागृत करें 


संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक अबोध शिशु,परमात्मा की एक पवित्र धरोहर है। जिसकी उचित प्रकार से रक्षा और विकास करके ही हम अपने उत्तरदायित्व को पूर्ण कर सकते हैं।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ