भारतीय संविधान की प्रस्तावना और उसका उद्देश्य,संभव,शाम्भवी पाण्डेय,The constitution of India and its significance
भारतीय संविधान की प्रस्तावना और उसका उद्देश्य (The constitution of India and its significance):
भारतीय इतिहास में स्वतंत्र भारत का संविधान भारतीयों की एक अभूतपूर्व कृति है। भारत का संविधान कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रस्तावना,भारतीय संविधान के आदर्शों व लक्ष्यों का दर्पण है।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना Constitution of India:
"हम भारत के लोग भारत को एक संपूर्ण संप्रभुत्व संपन्न समाजवादी पंथ निरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसमें समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समानता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राज्य की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26-11-1949 ई० को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।"
संविधान की इस प्रस्तावना को अधिनियमित अभिन्न अंग माना जाता है। जैसा कि केशवानंद भारती बनाम केरल सरकार के वाद में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि
प्रस्तावना संविधान का महत्वपूर्ण भाग है इसमें संशोधन किया जा सकता है किंतु संविधान के उस भाग का संशोधन नहीं किया जा सकता जो संविधान के मूलभूत ढांचे से संबंधित है।
अतः संसद ने 42 वें संविधान संशोधन द्वारा प्रस्तावना में 3 नए शब्द - समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, अखंडता शब्द जोड़ दिए हैं जिससे प्रस्तावना अपने वर्तमान स्वरूप में आ पाइ है।
भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं:
भारतीय इतिहास में स्वतंत्र भारत का संविधान भारतीयों की एक अभूतपूर्व कृति है। भारत का संविधान कई दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान रखता है। विश्व के अन्य संविधानों की भांति अपनी कतिपय निजी विशेषताओं के कारण भारतीय संविधान विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
भारतीय संविधान की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार है -
विश्व का सबसे विशाल संविधान
जनता का अपना संविधान
लिखित और निर्मित संविधान
कठोर और लचीला संविधान
संविधान की सर्वोच्चता
संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य
धर्मनिरपेक्ष राज्य
संघात्मक राज्य
संसदीय पद्धति
जनता के मौलिक अधिकारों का प्रतिपादन
राज्य के नीति निर्देशक तत्व
स्वतंत्र न्यायपालिका
एक ही नागरिकता
एक ही राज्य भाषा
संविधान में संशोधन की सरलता
भारतीय संविधान का उद्देश्य:
भारतीय संविधान के उद्देश्य को हम मुख्यता दो रूपों में समझ सकते हैं -
1- संविधान के स्रोत का ज्ञान
2- संविधान के उद्देश्य का ज्ञान
1- संविधान के स्रोत का ज्ञान:
भारतीय संविधान के प्रस्तावना की पदावली स्पष्ट करती है कि भारतीय संविधान के स्रोत भारत की जनता है, भारतीय जनता ने अपनी संप्रभु इच्छा को इस संविधान के माध्यम से व्यक्त किया है।
प्रस्तावना में प्रयुक्त प्रभुता संपन्न शब्द इस बात का घोतक है कि भारत आंतरिक या बाह्य दृष्टि से किसी भी विदेशी सत्ता के अधीन नहीं है। प्रभुता का अभिप्राय यह भी है कि भारत के पास स्वतंत्र अधिकार है यह किसी से भी समझौता या संधि कर सकता है, विदेश नीति का निर्धारण स्वयं कर सकता है, राज्य के भी विषय पर कानून बना सकता है।
समाजवादी पंथनिरपेक्ष शब्द 42 वें संविधान संशोधन द्वारा शामिल किया गया है जोकि उल्लेखित आर्थिक,न्याय व विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता पदों की दिशा देती है।
लोकतंत्रात्मक शब्द इस बात का परिचायक है कि भारत की सरकार जनता का जनता के लिए जनता के द्वारा स्थापित की गई है।
वहीं गणराज्य शब्द इस बात का प्रतीक है कि वंशानुगत राजा की परंपरा का अंत हो गया है और राष्ट्रपति ही जनता का प्रतिनिधि होता है।
प्रस्तावना में अखंडता शब्द 42 वें संविधान संशोधन द्वारा शामिल किया गया है जिसका अभिप्राय है कि भारत संघ के राज्यों को अलग होने का अधिकार नहीं है और संविधान किसी भी व्यक्ति को देश की अखंडता के विरुद्ध कुछ भी करने या कहने का अधिकार नहीं देता है।
2- संविधान के उद्देश्य का ज्ञान:
भारतीय संविधान का उद्देश्य भारत की जनता को निम्नलिखित अधिकार दिलाता है -
सामाजिक आर्थिक व राजनैतिक न्याय
विचार मत विश्वास तथा धर्म की स्वतंत्रता
पद एवं अवसर की समानता
व्यक्ति की गरिमा राज्य की एकता और अखंडता के लिए बंधुत्व
इस प्रकार संविधान की प्रस्तावना जहां व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए मौलिक अधिकारों की वकालत करता है वहीं व्यक्तियों के ऊपर बंधुत्व बनाए रखने की जिम्मेदारी भी आरोपित करता है ताकि राष्ट्र की एकता, अखंडता व व्यक्ति की गरिमा अक्षुण्ण बनी रहे।
संविधान की प्रस्तावना के बारे में ठाकुर दास भार्गव ने कहा था कि -
प्रस्तावना संविधान की सबसे मूल्यवान भाग है, यह संविधान की आत्मा है, यह संविधान की कुंजी है, यह संविधान में जड़ा हुआ एक रत्न है,यह एक गघात्मक कविता है, यह अपने आप में पूर्ण है ।
1 टिप्पणियाँ
Very good
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