Good manners (क्यों जरूरी है बड़ों का सम्मान करना,बच्चों को सिखाएं बड़ों का सम्मान क्यों करते हैं ),संभव,शाम्भवी पाण्डेय
अपने से बड़ों का सम्मान करना हमें बचपन से ही सिखाया जाता है। बड़ों की रिस्पेक्ट करना गुड मैनर्स होता है यह बात हम भी अपने बच्चों को सिखाते हैं। पर बड़ों का सम्मान करते क्यों हैं इस बात को भी जानना उतना ही जरूरी है ।
बचपन,बच्चे और उनका मनोविज्ञान की आज की श्रृंखला में हम सभी यह चर्चा करेंगे कि हम अपने बड़ों का सम्मान क्यों करते हैं? साथ ही साथ अपने बच्चों में इस गुड मैनर्स के महत्व के बारे में भरी हुई सारी उत्सुकता को भी समझाएंगे ।
बच्चों को सिखाएं बड़ों का सम्मान क्यों करते हैं :
सबसे पहले हम या समझे की रिस्पेक्ट या सम्मान है क्या ?
जब भी कोई हमसे बड़ा हमारे सामने आता है तो हम झुक के उसका अभिवादन करते हैं,उन्हें प्रणाम करते हैं, उन्हें बैठने के लिए कहते हैं, उनकी बातों को मानते हैं, उनके साथ विनम्रता के साथ पेश आते हैं या घर में कोई बड़े बुजुर्ग हमें डांट दें तो हम शांतिपूर्वक उनकी बातों को सुनकर उसे मानते हैं। यह सारी बातें जो हम अपने दिनचर्या में अपनी आदत की तरह करते हैं यही अपने से बड़े का सम्मान है ।
यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि अपने से बड़े-बुजुर्ग, माता-पिता और टीचर से आशीर्वाद मिलने से मनुष्य का मनोबल बढ़ता है। उसके अंदर सकारात्मकता बढ़ती है। उससे एक प्रकार की शक्ति अनुभव की जाती है। इसलिए किसी भी मंगल कार्य को करने से पूर्व, किसी भी त्योहार पर, किसी भी खुशी के मौके पर या कोई भी कार्य आरंभ करने के पूर्व हम अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं या बड़ों के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं।
हमें अपने बच्चों को यह बातें समझानी होगी कि बड़ों के प्रति सम्मान तथा अनुशासन होना पारिवारिक संगठन का मूल आधार होता है।
बड़ों की ममता और उनके अनुभवों का लाभ हम विनीत होकर ही पा सकते हैं और बच्चों को इस आध्यात्मिक पृष्ठभूमि में ढालने के लिए हमारे आचरण में भी बड़ों के प्रति सम्मान का समावेश बना रहना चाहिए।
अगर हम अपने धर्म ग्रंथो जैसे रामायण, महाभारत आदि को पढ़े तो इसमें भी अनेक ऐसे प्रसंग आते हैं जहां कई बड़े-बड़े व्यक्तित्व विपरीत परिस्थितियां होने के बावजूद भी, इस नैतिक मर्यादा का पालन करते हुए दर्शाए गए हैं ।
महाभारत में ऐसे अनेक प्रसंग आते हैं जब विपक्षी पितामह भीष्म और गुरु द्रोणाचार्य का अर्जुन आदि पांडव चरण स्पर्श करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। शिष्य की निष्ठा से द्रवीभूत गुरु उनकी जय कामना करते हैं और वैसा होता भी है ।
किसी के प्रति सम्मान प्रकट करने से या उन्हें प्रणाम करने से मनुष्य छोटा नहीं होता वरन इससे उस व्यक्ति के श्रेष्ठ आचरण की प्रतिष्ठा और बढ़ती है।
शुद्ध अंतःकरण से किया हुआ नमन आंतरिक शक्तियों को जगाता है जिससे हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है,यह हमें कार्य की सफलता की ओर अग्रसर करती है।
- शाम्भवी पाण्डेय
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