बातचीत करने की कला,Art of conversation,संभव, शाम्भवी पाण्डेय,(baatacheet karane kee kala,talk skills)
मानव जीवन में वाणी (बोल) का बहुत महत्व, इसे व्यक्तित्व का आभूषण भी कहा गया है। वाणी से जहां मनुष्य के व्यक्तित्व का परिचय मिलता है वहीं यह मनोभावों को अभिव्यक्त करने का सर्वश्रेष्ठ साधन भी माना गया है।
बच्चे,बचपन और उनके मनोविज्ञान की आज की श्रृंखला में हम चर्चा करेंगे “बातचीत करने की कला पर”। किस प्रकार अपने बच्चों में बातचीत करने की कला का बीजारोपण किया जाए और उसका विकास किया जाए।
बातचीत करने की कला :
वाणी का उपयोग तो सभी करते हैं किंतु कहां, क्या, और कितना बोलना चाहिए यह गुण हमें अपने बच्चों को जरूर सिखाना चाहिए।
तो आइए ‘बातचीत करने की कला’ को हम निम्नवत कुछ बिंदुओं पर समझते हैं -
1- निर्भय होकर अपनी बात को स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए।
2- मधुर भाषी होना चाहिए।
3- दूसरों की बात को भी ध्यान पूर्वक सुनकर सोच विचार करके फिर उत्तर देना चाहिए।
4- बोलते समय सामने वाले की रुचि का भी ध्यान रखना चाहिए।
5- हंसी मजाक में भी शालीनता बनाए रखनी चाहिए।
6- उपयुक्त अवसर देखकर ही अपनी बात को संक्षिप्त अर्थपूर्ण शब्दों में बताना चाहिए।
7- किसी बात की जानकारी न होने पर धैपूर्वक प्रश्न पूछ कर अपना ज्ञान बढ़ाना चाहिए।
8- सामने वाला बात में रुचि ना ले रहा हो तो बात का विषय बदल देना चाहिए।
9- पीठ पीछे किसी की बुराई न करनी चाहिए ना सुननी चाहिए।
10- किसी की गलत बात को सुनकर उसे तुरंत अपमानित न कर उस समय मौन रहना चाहिए उचित समय देखकर उसे अलग से नम्रता पूर्वक समझाना ठीक रहता है।
11- बिन मांगे सलाह नहीं देनी चाहिए।
12- अपनी बात का प्रारंभ संबोधन के साथ करना चाहिए।
13- बात करते समय किसी के पास एकदम सटना नहीं चाहिए।
14- किसी की ओर उंगली उठाकर बात नहीं करनी चाहिए।
- शाम्भवी पाण्डेय
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