बचपन की यादों का गुलदस्ता- एक कविता

 


बचपन की यादों का गुलदस्ता- एक कविता, संभव shambhav


आज की भागमभाग भरी लाइफ स्टाइल में प्रत्येक व्यक्ति व्यस्तता में गिरा हुआ है। ऐसे में बचपन की यादें उसे खुशियों के एहसास से भर देती हैं। 


एहसासों की यही अभिव्यक्ति है 

"बचपन की यादों का गुलदस्ता"….


बचपन की यादों का गुलदस्ता,

जीवन महकाता रहता है ।

जब भी देखे बचपन कोई,

खुद का बचपन दिखता है ।


वो रोना, वो ज़िद्दीपन,

वो बात मनवाने पर खुश होना ।

यूं ही किसी के आंख दिखाने पर

आंसुओ का झरना बहता है ।


वो बहाने, वो भागमभागी,

वो आजादी से जिंदगी जीना ।

बेखबर, बेपरवाह रह दुनिया से,

मस्ती में गोते लगाता है ।


वो दुलार, वो लाड प्यार,

वो दुआओ का हाथ कई ।

हर रोज नज़रे उतारे माँ,

ऐसा न्यारा बचपन होता है ।


एक बार जो बीता बचपन,

फिर लौटकर न आता है ।

यादों में ही बसता है,

यादों में ही खिलखिलाता है ।


मासूमियत के इस समय को,

संजो लो अपने जीवन में ।

बच्चों में दिखता अपना बचपन है,

यह खुशियों का तोहफा है ।।



       - शाम्भवी पाण्डेय

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