Vijay Dashmi Dussehra 2022: जानिए क्यों मनाते हैं नवरात्र के दसवें दिन विजयादशमी : क्या है कथा, राम की शक्ति पूजा

Vijay Dashmi Dussehra 2022: जानिए क्यों मनाते हैं नवरात्र के दसवें दिन विजयादशमी ? क्या है कथा, राम की शक्ति पूजा कविता | SHAMBHAV शाम्भवी पाण्डेय

शारदीय नवरात्र के 9 दिन मां दुर्गा की पूजा अर्चना से  जुड़ा है तथा दसवीं के दिन भगवान राम के द्वारा अन्याय के प्रतीक रावण का वध किया जाता है । 

                                   


यह प्रश्न उठता है कि दुर्गा नवरात्रि पूजा और रावण वध विजयदशमी के बीच क्या संबंध है ?


नवरात्रि के दिनों में शक्ति के प्रतीक मां दुर्गा की पूजा और दसवें दिन अन्याय के प्रतीक रावण का वध आपस में अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है ।


अगर हम रामकथा के विभिन्न रूपों , विभिन्न रामायण का अध्ययन करें तो हमें नवरात्रि और विजयदशमी के बीच बहुत ही घनिष्ट संबंध के बारे में जानकारी प्राप्त होती है । 


इसी संबंधों को व्यक्त करते हुए

महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के द्वारा भी बांग्ला के कृतिबास रामायण को आधार बनाकर वर्ष  १९३६ में “ राम की शक्ति पूजा “ नामक कविता लिखी गई है ।


इस कविता में भी नवरात्रि पूजा में भगवान राम द्वारा शक्ति प्राप्ति के लिए  पूजा और शक्ति प्राप्ति बाद रावण वध की चर्चा है ।


कथा के अनुसार-

जब भगवान राम, रावण के साथ युद्ध में संघर्ष करने के पश्चात भी विजय नहीं प्राप्त कर पा रहे थे और उन्हें प्रतिदिन अपना संघर्ष कठिन प्रतीत हो रहा था |

उन्हें लग रहा था कि रावण के द्वारा भी शक्ति आराधना किया जा रहा है तो किस प्रकार सीता की प्राप्त होगी ? किस प्रकार अन्याय पर न्याय की विजय होगी ?  

भगवान राम के मन का भाव निम्न शब्दों में देखा जा सकता है-


मित्रवर विजय होगी ना समर 

यह नहीं रहा नर वानर का राक्षस से रण

उतरी पा महाशक्ति रावण से आमंत्रण 


इसी हताशा के वातावरण में राम की सेना के सबसे वरिष्ठ सदस्य जामवंत के द्वारा राम को शक्ति आराधना कर शक्ति प्राप्त करने और फिर विजय हेतु रावण के ऊपर पूरी शक्ति से प्रहार करने की सलाह देते हैं ।


"हे पुरुष सिंह तुम भी

 करो यह शक्ति धारण

आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर

शक्ति की करो मौलिक कल्पना"



भगवान राम युद्ध को लक्ष्मण आदि सहयोगीयों को सौंप कर शक्ति की आराधना प्रारंभ करते हैं और हनुमान जी से 108 कमल (इंदीवर) लाने के लिए कहते हैं जिससे प्रत्येक चरण के पश्चात मां दुर्गा को एक कमल समर्पित किया जा सके हैं ।



 भगवान राम शक्ति की आराधना प्रारंभ कर क्रमशा: शक्ति प्राप्त कर ,कमल समर्पित कर पूजन के अगले चरण में प्रवेश करते हैं ।


इसी क्रम में पूजा का अंतिम चरण संपन्न होने के पश्चात मां दुर्गा को कमल चढ़ाने के लिए भगवान श्री राम अपना हाथ बढ़ाते हैं तो देखते हैं कि एक कमल नहीं है (माना जाता है कि मां दुर्गा उनकी परीक्षा लेने के लिए स्वयं ही एक कमल को गायब कर देती है । )


भगवान श्री राम अंतिम चरण के पूर्णाहुति के रूप में कमल को न पा कर बहुत ही निराश होते हैं ।

निराशा मे एक सामान्य मानव के भांति उनके मन में भाव उठता है  कि बिना शक्ति प्राप्ति के मैं विजय कैसे प्राप्त कर पाऊंगा और फिर अपनी सीता का उद्धार कैसे कर पाऊंगा, विभीषण से लंका नरेश बनाने का वादा कैसे पूरा होगा ।

उनके मन के विचारों को निम्न रूप में देखा जा सकता है-


धिकजीवन जो पता ही आया विरोध

धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोक

जानकी हाय उद्धार प्रिया का हो न सका"


लेकिन इसी हताशा के वातावरण में राम की मन में एक विचार बिजली की तरीके चमकता है । अचानक उन्हें याद आया कि

मेरी मां तो मुझे राजीव नयन कहती थी मेरे  नैनो को कमल के समान कहती थी । 


"यह है उपाय 

कहती थी माता मुझे राजीव नयन 

दो नीलकमल है शेष अभी, यह पुरषचरण 

पूरा करता हूं माता दे एक नयन "


 अभी मेरे पास दो कमल शेष है अगर मैं अपने एक नेत्र का दान कर देता हूं तो निश्चित ही मेरी पूजा भी पूर्ण होगी और मुझे शक्ति भी प्राप्ति होगी और शक्ति प्राप्त होने के बाद मुझे अन्याय का विनाश करने में सफलता प्राप्त होगी ।


जैसे भगवान राम अपनी आंख निकालने के लिए अस्त्र उठाते हैं उसी समय तुरंत मां दुर्गा प्रसन्न हो प्रकट होती हैं और उन्हें विजय का आशीर्वाद देती हैं और बताती हैं कि उनके द्वारा ही उनकी परीक्षा लिया गया है ।


" होगी जय, होगी जय , हे पुरुषोत्तम नवीन 

कह महाशक्ति राम के बदन में हुई  हुई लीन



इस प्रकार भगवान 9 दिन की उपासना पश्चात शक्ति प्राप्त करते हैं और इसी शक्ति प्राप्ति पश्चात दसवीं के दिन अन्याय के प्रतीक रावण का वध करते हैं|


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