Lata Mangeshkar लता मंगेशकर-सुर साम्राज्ञी

 Lata Mangeshkar लता मंगेशकर-सुर साम्राज्ञी, संभव, Shambhav, शाम्भवी पाण्डेय


यह लता जी की आवाज और सुर का जादू है कि, 'ऐ मेरे वतन के लोगों' की धुन आज गणतंत्र दिवस के अवसर पर राजपथ पर सुनी जा रही है।

  


लता मंगेशकर ऐसी सांस्कृतिक परिघटना रही हैं, जिनके होने से हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया को विदेश में भी सुगम संगीत के क्षेत्र में स्वीकार्यता और प्रशंसा मिली।

लता मंगेशकर का होना, स्त्री की आकांक्षा और सपनो की उन्मुक्त उड़ान का पर्याय रहा है।

उनकी आवाज ने अपनी तैयारी, रियाज और कठोर परिश्रम से समाज को अपनी शर्तों पर ऐसा मुरीद बनाया कि -

एक दौर वह भी आया जब संगीत और सुरीली आवाज का मतलब लता मंगेशकर होता था।


संगीत-कला के शिखर पर पहुंचने का स्वप्न देखने वाली हर लड़की का कंठ आज अवरुद्ध हुआ होगा ।यह हर संगीत प्रेमी के लिए राष्ट्रीय शोक जैसी स्थिति है।


पूरा नाम

लता दीनानाथ मंगेशकर

जन्म

28 सितंबर,1929

मृत्यु

6 फरवरी,2022

जन्म स्थान

इंदौर (मध्यप्रदेश)

पिता

पंडित दीनानाथ मंगेशकर

माता

शुद्धमती मंगेशकर

बहनें

आशा भोसले, मीना खडीकर, उषा मंगेशकर

भाई

हृदयनाथ मंगेशकर


प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान:

फिल्म फेयर पुरस्कार

1958,1962,1965,1969,1993,1994

राष्ट्रीय पुरस्कार

1972,1975,1990

महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार

1966,1967

पद्म भूषण

1969

दादा साहेब फाल्के पुरस्कार

1989

फिल्म फेयर के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार

1993

स्क्रीन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार

1996

राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार

1997

पद्म विभूषण 

1999

आइफा का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार

2000

स्टार्टर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार, 


नूरजहां पुरस्कार, 




महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार

2001

भारत रत्न

2001

लता मंगेशकर पुरस्कार

(उनके नाम पर दिया जाने वाला पुरस्कार)

1984 ( मध्यप्रदेश में),

1992 ( महाराष्ट्र में)


लता मंगेशकर जी की भक्ति साधना:


फिल्म निर्देशक वसंत जोगलेकर के इतना भर कह देने पर कि, लता ! कब तक तुम फिल्मों के लिए ही गाती रहोगी... कुछ ऐसा करो जो शाश्वत हो! उन्होंने 'भगवद्गीता' और 'ज्ञानेश्वरी' गाकर रिकार्ड किया। 


लता मंगेशकर को भक्ति के पद गाने में बहुत आनंद आता था। उन्होंने मीरा का पद 'माई माई कैसे,जियू रे' उनको बेहद पसंद था। उसके पीछे उनकी कृष्ण मैं आस्था थी। 


वे कोई भी गीत कागज पर लिखती थीं तो सबसे पहले कागज पर श्रीकृष्ण लिखती और उसके बाद गीत के बोल |


दूसरा वाकया राम भक्ति से जुड़ा है। लता मंगेशकर जी 'राम रतन धन पायो' वाला रिकार्ड तैयार कर रही थीं। पंडित नरेन्द्र शर्मा ने उनसे कहा कि -


राम ऐसे अकेले भगवान हुए हैं कि अगर कोई उनकी तन-मन से सेवा करे तो उसका सारा कार्य सिद्ध होता है। राम ही वो ईश्वर हैं जो सत्य के छोर पर खड़े होकर आपको अंत में निर्वाण की दशा में ले जाते हैं।


इस रिकार्ड के बनने तक उनकी भगवान राम में श्रद्धा बढ़ने लगी।

लता जी तभी से राम भक्ति में डूब गई और उनका मानना था मैं कि उनके जैसा चरित्र बल किसी दूसरे पौराणिक किरदार में ढूंढ़ने से नहीं मिलेगा। 


इस तरह से देखा जा सकता है कि दीदी लता मंगेशकर एक बेहद धार्मिक और आस्थावान महिला थीं। उन्होंने इसको कभी छिपाया भी नहीं।


सादर श्रद्धाजंलि:


इस दुनिया की सुर साम्राज्ञी जिसकी आवाज में जादू था आज इस दुनिया को छोड़कर अनन्त में विलीन हो गयी हैं और पीछे उनके अथाह प्रशंसकों का दुखी जन-समूह छूट गया है, जिसने पिछली शताब्दी में हुई इस असाधारण महिला को अपने हृदय में स्थापित कर रखा था।


अपने जीते जी लीजेंड बन चुकी सुरों की मलिका भारत रत्न लता मंगेशकर जी की सुरीली आवाज ही उनकी पहचान रही है, जो हर किसी को भाव-विहल करती रही है। बेशक अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी मधुर आवाज युगों-युगों तक हम सभी के कानों में रस घोलती रहेगी....


दीदी लता जी को उनके करोड़ों प्रशंसकों, संगीत के हर छोटे-बड़े विद्यार्थियों, कलाकारों समेत प्रत्येक भारतवासी की ओर से प्रणाम और सातों सुरों की दैवीय उपस्थिति के साथ विनम्र श्रद्धांजलि...




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