बुद्ध पूर्णिमा का महत्व क्या है?

               बुद्ध पूर्णिमा का महत्व क्या है?

                                    



मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से ,लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।

                             - भगवान गौतम बुद्ध


शांति के दूत, सत्य, अहिंसा के मार्गदर्शक, ज्ञान रूपी दीपक के समान भगवान बुद्ध को आज बुद्ध पूर्णिमा पर शत-शत नमन तथा आप सभी पाठकों को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं। 




    भगवान बुद्ध से जुड़ी प्रेरणादायक कहानी 


    आज हम अपनी बातें भगवान बुद्ध से जुड़ी एक कहानी कहानी के माध्यम से कहते हैं ।एक लड़का अत्यंत जिज्ञासु था

    जहां भी उसे कोई नई चीज सीखने को मिलती, वह उसे सीखने के लिए तत्पर हो जाता।


    उसने एक तीर बनाने वाले से तीर बनाना सीखा, नाव बनाने वाले से नाव बनाना सीखा, मकान बनाने वाले से मकान बनाना सीखा, बांसुरी वाले से बांसुरी बनाना सीखा। इस प्रकार वह अनेक कलाओं में प्रवीण हो गया। लेकिन उसमें थोड़ा अहंकार आ गया। वह अपने परिजनों व मित्रों से कहता 'इस पूरी दुनिया में मुझ जैसा प्रतिभा का धनी कोई नहीं होगा।


    एक बार शहर में गौतम बुद्ध का आगमन हुआ। उन्होंने जब उस लड़के की कला और अहंकार दोनों के विषय में सुना तो मन में सोचा कि इस लड़के को एक ऐसी कला सिखानी चाहिए, जो अब तक की सीखी कलाओं से बड़ी हो। वे भिक्षा का पात्र लेकर उसके पास गए।


    लड़के ने पूछा- 'आप कौन हैं?' बुद्ध बोले- 'मैं अपने शरीर को नियंत्रण में रखने वाला एक आदमी हूँ। लड़के ने उन्हें अपनी बात स्पष्ट करने के लिए कहा। तब उन्होंने कहा- 'जो तीर चलाना जानता है, वह तीर चलाता है। जो नाव चलाना जानता है, वह नाव चलाता है, जो मकान बनाना जानता है, वह मकान बनाता है, मगर जो ज्ञानी है, वह स्वयं पर शासन करता है।'


    "लड़के ने पूछा- 'वह कैसे?' बुद्ध ने उत्तर दिया- 'यदि कोई उसकी प्रशंसा करता है, तो वह अभिमान से फूलकर खुश नहीं हो जाता और यदि कोई उसकी निंदा करता है, तो भी वह शांत बना रहता है और ऐसा व्यक्ति ही सदैव आनंद में रहता है।लड़का जान गया कि सबसे बड़ी कला स्वयं को वश में रखना है। कथा का सार यह है कि आत्मनियंत्रण जब सध जाता है, तो समभाव आता है और यही समभाव अनुकूल प्रतिकूल दोनों स्थितियों में हमें प्रसन्न रखता है।


    बुद्ध पूर्णिमा कब मनाया जाता है ?

    हिंदू कैलेंडर के अनुसार बुद्ध पूर्णिमा आमतौर पर अप्रैल या मई में पड़ता है | वैशाख माह की पूर्णिमा का दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है।इस वर्ष 26 मई २०२१ को मनाया जायेगा |


    बुद्ध पूर्णिमा क्यों मनाया जाता है और इस दिन का विशेष महत्व क्या है ?

    बुद्ध पूर्णिमा को बुद्ध जयंती के रूप में भी जाना जाता है, जो बौद्ध मतावलंवियों  का सबसे पवित्र त्यौहार है । इस दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ ,बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन भगवान गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ। यह दिन हिन्दूओं के लिए भी विशेष महत्व रखता है क्योकि गौतम बुद्ध को विष्णु का 9 वा अवतार माना जाता है |


    भगवान बुद्ध जीवन परिचय


    गौतम बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल के कपिलवस्तु के पास लुंबिनी में हुआ था। वे एक वास्तविक ऐतिहासिक व्यक्ति थे। बुद्ध लुंबिनी (वर्तमान में भारत और नेपाल की सीमा से लगे एक छोटे से राज्य ) के शासक के राजकुमार थे जिनका मन समृद्धि और सामाजिक सुधार में ही लगता था ।इतिहासकारों के अनुसार इनका वास्तविक नाम सिद्धार्थ था ।इनके पिता का नाम शुद्धोधन तथा माता का नाम मायादेवी था । सिद्धार्थ के जन्म से 7 दिन बाद ही उनकी माता का निधन हो गया। इसके बाद उनकी परवरिश उनकी सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया था।


    16 वर्ष की अवस्था में राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की एक सुंदर राजकुमारी के साथ हुआ ।उनका एक पुत्र भी हुआ|


    सिद्धार्थ के जीवन में उस समय मोड़ आया जब वह 27 वर्ष के थे। राजसी आनंदों के बीच अपने मन में चल रहे अंतर्द्वंद के कारण महल के मैदान के बाहर उधत किए । वह सांसारिक कष्टों (वृद्धावस्था, बीमारी, मृत्यु ,रुदन) से बहुत आहत हुए , और अपनी पत्नी, पुत्र और धन को छोड़कर आत्मज्ञान की तलाश में सन्यास धारण कर लिए।


    वे कई स्थानों पर भटकते रहे , और 35 वर्ष की आयु में वह बोधगया आए।  यहां एक पीपल के पेड़ के नीचे 6 साल तक कठिन तब किए । वह बोधिवृक्ष आज भी बिहार के गया जिले में स्थित है। कठिन तपस्या  एवं  एकांत साधना के बाद उन्होंने निर्वाण, स्थायित्व की स्थिति प्राप्त किए। इस प्रकार व बुद्ध बन गए ।

    भगवान गौतम बुद्ध 483 ईशा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन ही पंचतत्व में विलीन हुए थे।इस दिन को परिनिर्वाण दिवस कहा जाता है।



    भगवान बुद्ध के विचार

    कठिन तपस्या तथा सत्य की खोज के पश्चात जब भगवान बुद्ध को आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई, तब उन्होंने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया। बाद में उनके शिष्यों ने उनके द्वारा दिए गए उपदेश को जनमानस तक पहुंचाया। उनके उपदेश, संदेश और विचार मनुष्य को नैतिक मूल्य और संतोष पर आधारित जीवन जीने की दिशा में प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है । भगवान बुद्ध ने पूरे विश्व को शांति,करुणा और सहिष्णुता के मार्ग के लिए प्रेरित किया ।  स्थायित्व की स्थिति को प्राप्त करने के लिए,कार्य, वचन, सत विचार की शुद्धता के लिए बुद्ध जी ने 10 बातें दुनिया को बताइए

    •    किसी की हत्या ना करना

    •     चोरी ना करना

    •     दुराचार ना करना

    •     झूठ ना बोलना

    •     दूसरों की निंदा ना करना

    •     दूसरों का दोष ना निकालना

    •     आपत्तिजनक भाषण ना करना

    •     लालच ना करना

    •     दूसरों से ईर्ष्या ना करना

    •     अज्ञान से बचना

    बुद्ध जी कहते हैं कि सत्य के मार्ग पर चलते हुए व्यक्ति केवल दो ही गलतियां कर सकता है पहली या तो पूरा रास्ता ना तय करना और दूसरी या फिर शुरुआत ही ना करना।


    भगवान बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता

    भगवान बुद्ध के विचार सिर्फ उस युग में ही नही अपितु. वर्तमान युग में भी प्रासंगिक है ।भगवान बुद्ध के सिद्धांत वर्तमान समय में जहां एक तरफ व्यक्ति को संयमित बनाने से जुड़ा हुआ है वहीं दूसरी तरफ समाज को भी एक दिशा देने का कार्य करता है। झूठ ना बोलना, दुराचार ना करना, निंदा ना करना, दोष ना निकालना ,लालच ना करना आदि  कहीं ना कहीं आत्म शोधन की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है । आत्म शोधन के द्वारा ही व्यक्ति सामान्य व्यक्ति से महान व्यक्ति बनने की तरफ अग्रसर हो सकता है और अपने दुखों से मुक्त हो सकता है । अपने विचार और सिद्धांतों के माध्यम से भगवान बुद्ध हमेशा व्यक्ति और समाज को प्रकाशित करते रहेंगे।

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