स्वामी विवेकानंद जी की प्रासंगिकता | राष्ट्रीय युवा दिवस-२०२२, जीवन परिचय ,शिक्षा ,युवा ,विचार , शिकागो भाषण २०२२,विचारक, युवाओं के प्रेरणास्रोत, स्वामी विवेकानंद जी-
विश्व में भारत की विराट आध्यात्मिक चेतना, वैभवशाली सांस्कृतिक परंपरा की पताका फहराने वाले , महान दार्शनिक, विचारक ,अनंत ज्ञान एवं ऊर्जा के पर्याय एवं प्रत्येक युवा के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद जी को कोटि कोटि नमन।
आइए महान विचारक, युवाओं के प्रेरणास्रोत, स्वामी विवेकानंद जी के जीवन एवं उनकी शिक्षाओं के बारे में जानते हैं-
"कोई एक विचार लो उसे अपनी जिंदगी बना लो उसी के बारे में सोचो और सपने में भी वही देखो। उठो जागो और तब तक न रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए!"- स्वामी विवेकानंद
हमारे देश में कई ऐसे महापुरुष हुए हैं जिनके जीवन और विचार से हमें बहुत कुछ सीख मिलती है।
उनके विचार ऐसे होते हैं जैसे जिंदगी की निराशा रूपी अंधकार में आशा रूपी दीपक जल रहा हो ।
इन्हीं में से एक हैं स्वामी विवेकानंद जी।
विलक्षण प्रतिभाशाली स्वामी विवेकानंद जी ने अपने ज्ञान, ध्यान, देशप्रेम की पताका दुनिया भर में फैलाई।देश के युवाओं के लिए आज भी स्वामी विवेकानंद जी उतने ही प्रासंगिक है।
जीवन परिचय-
12 जनवरी 1863 को कोलकाता में जन्मे स्वामी विवेकानंद प्रखर बुद्धि के बालक थे जिन के बचपन का नाम नरेंद्र दत्त था।संगीत साहित्य ,दर्शन, कुश्ती ,अर्थशास्त्र ,राजनीति शास्त्र ,वेद ,पुराण, प्रत्येक क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद गहन अध्ययन किए थे, साथ ही वे पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपी इतिहास का भी अध्ययन किए थे ।
25 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद जी ने संन्यास ले लिया और गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस के अनन्य शिष्य बने।
1 मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन , 9 दिसंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।
अच्छी जीवन शैली होने के बाद भी स्वामी विवेकानंद कई बीमारियों से ग्रसित थे। 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 वर्ष की आयु में बेलूर मठ में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए।
नरेंद्र दत्त विवेकानंद कैसे बने-
स्वामी विवेकानंद जब तक नरेंद्र थे बहुत तार्किक थे । मूर्ति पूजा के विरोधी थे । परंतु उनमें परमात्मा को पाने की जिज्ञासा अति तीव्र थी,गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस जी ने उनसे कहा कि" तर्क से सत्य को नहीं जाना जा सकता , समर्पण भाव में आओ तभी सत्य का साक्षात्कार हो सकेगा बुद्धि को गिरा कर अपने विवेक को जागृत करो "।
गुरुदेव की इस बात से स्वामी जी बड़े प्रभावित हुए बस तभी से नरेंद्र दत्त विवेकानंद हो गए।
देश भ्रमण-
वर्ष 1886 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस के निधन के पश्चात गुरु की आज्ञा अनुसार स्वामी विवेकानंद पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा आरंभ की। गरीबी अज्ञानता शोषण सामाजिक बुराई एवं अपराध इन सब से बहुत दुखी हुए उनका कहना था कि
"आप ही अपना उद्धार करना होगा" ।
शिक्षा कैसी होनी चाहिए-
शिक्षा प्रणाली के बारे में स्वामी विवेकानंद जी कहते हैं किशिक्षा का अर्थ केवल बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल करना ही नहीं है जिसका कोई इस्तेमाल ना किया जा सके
हमारे शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो जीवन निर्माण व्यक्तित्व निर्माण चरित्र निर्माण पर आधारित हों |
उनका मानना था कि अधिकतर युवा सफल और अर्थपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं जिसके लिए वह विदेश जाने को प्रयासरत रहते हैं जबकि उन्हें स्वदेश हित के विषय में चिंता ही नहीं ,
हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो राष्ट्र निर्माण के लिए उपयोगी हो।
शिक्षा के बारे में स्वामी विवेकानंद के विचार महज किताबी ज्ञान पर आधारित नहीं थे। उनका मानना था कि
सैद्धांतिक शिक्षा के स्थान पर व्यावहारिक शिक्षा व्यक्ति के लिए उपयोगी होती है। उनका विश्वास था कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य निर्माण की प्रक्रिया है।
उनका कहना था कि इच्छाशक्ति के प्रवाह और विकास नियंत्रित करने के लिए जिस संयम की आवश्यकता होती है, वहीं शिक्षा कहलाती है ।
शिक्षा का उपयोग चरित्र गठन के लिए किया जाना चाहिए ।
स्वामी विवेकानंद का स्पष्ट कहना था कि
" शिक्षा वह है जिससे हम अपना जीवन निर्माण कर सकें। मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सकें, विचारों का सामांज्स्य कर सकें।"पूर्व और पश्चिम के बीच के अंतर को व्याख्या करते हुए स्वामी जी कहते हैं कि इसके अंतर का मुख्य कारण शिक्षा है।
शिक्षा से ही व्यक्तित्व विकसित होता है और चरित्र की उन्नति होती है।
स्त्री शिक्षा-
स्त्री शिक्षा के बारे में स्वामी जी का मानना था की महिला तो मातृत्व का ही प्रतीक है |भारतीय महिलाओं का आदर्श सीता, सावित्री , और दमयंती हैं| स्त्री शिक्षा कैसी हो ? इस बारे में उनका कहना था कि
स्त्री को शिक्षा देना सबसे महत्वपूर्ण है |जब हम किसी स्त्री को शिक्षा देते हैं तो केवल स्त्री कि नहीं, उसके पुत्र एवं परिवार को भी शिक्षित करते हैं | यह किसी व्यक्ति को शिक्षित करने से ज्यादा महत्वपूर्ण है |
महिलाओं को केवल शिक्षा दो इसके बाद वे स्वयं ही सशक्त हो जाएंगी |
युवा-
स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि"कोई भी समाज अपराधियों की सक्रियता की वजह से गर्त में नहीं जाता , बल्कि अच्छे लोगों की निष्क्रियता इसकी असली वजह है इसलिए नायक बनो हमेशा निडर रहो "
युवकों को गीता पढ़ने के बजाय फुटबॉल खेलना चाहिए युवाओं की स्नायु मांसपेशियां फौलादी होनी चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है।
आज जहां देश इतनी तरक्की कर रहा है वही समाज में अपराध भी बड़ी तेजी से फैल रहा है जिसमें युवाओं की संलिप्तता अत्यधिक देखी गई है।
स्वामी विवेकानंद के विचार युवाओं को शारीरिक रूप से स्वस्थ बनने को निडर बनने को सदर नायक बनने को प्रेरित करते हैं इसके लिए युवाओं की बल और विवेक को सही दिशा और गति देने की आवश्यकता है|
शिकागो भाषण-
सन 1893 में शिकागो अमेरिका में हो रहे विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी विवेकानंद भारत की ओर से सनातन धर्म हिंदुत्व के प्रतिनिधि के रूप में पहुंचे ।यहां उन्होंने एक ऐसा यादगार भाषण दिया जिसने भारत की अतुल्य विरासत ज्ञान का डंका पूरे विश्व में बजा दिया ।
बेहद कम उम्र में विवेकानंद जी ने पूरे विश्व को अपने ज्ञान का लोहा मनवा दिया। धर्म सम्मेलन के मंच पर जब विवेकानंद जी का नाम पुकारा गया और जब वे मंच पर पहुंचे, उस समय वह बहुत घबराए हुए थे ।
मन में अपने गुरु का ध्यान करके वे बोलना शुरू किए तब संबोधन के रूप में उनका पहला शब्द था -
मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों
उनके हृदय स्पर्शी इस संबोधन को सुनकर वहां करीब 2 मिनट तक तालियों की गड़गड़ाहट बजती रही ।
स्वामी विवेकानंद जी ने आगे कहा की आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया उससे मेरा दिल आह्लादित है, और हर्ष से भर आया है।
मैं दुनिया की प्राचीनतम संत परंपरा और धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद करता हूं । सभी संप्रदायों एवं मतों के कोटि-कोटि हिंदुओं की तरफ से धन्यवाद करता हूं ।
मैं इस धर्म मंच से बोलने वाले उस वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद करता हूं जिन्होंने यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूर्व के देशों से फैला है ।
मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया ।
हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
स्वामी जी ने बताया कि हमारे सनातन धर्म का मानना है कि
अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ प्रारंभ मे अलग अलग स्रोतों से निकलकर अन्त मे समुद्र में मिल जाती हैं ,उसी प्रकार-
रुचीनांवैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम्।
नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव॥
अर्थात जैसे विभिन्न नदियाँ प्रारंभ मे अलग अलग स्रोतों से निकलकर अन्त मे समुद्र में मिल जाती हैं ,उसी प्रकार-
संसार के सभी धर्मों के नियम , परंपराएं, पूजा करने के ढंग आदि भले ही अलग-अलग हैं परंतु सब एक ही परमात्मा का ही ध्यान करते हैं और उन तक पहुंचने के लिए ही सारे मार्ग हैं।
जिस धरती पर हम रहते हैं सृष्टि के लाखों पिंडों में यही एक पिंड है जिसमें प्रकृति का संचरण है, जीवन है , इसलिये इसका सम्मान करो ।
प्रकृति का संरक्षण मनुष्य का पहला कर्तव्य है । सभी प्राणी, मनुष्य, जीव जंतु, धरती के आवश्यक अंग है । सभी प्राणियों के साथ सदव्यवहार करना चाहिए ।
प्रासंगिकता -
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वामी जी के बारे में कहा था" स्वामी जी ने पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान, अतीत और वर्तमान का सामंजस्य स्थापित किया है ।
देश के युवाओं ने उनकी शिक्षाओं से आत्मसम्मान, आत्मनिर्भरता में सफलता प्राप्त किया है। स्वामी जी भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आध्यात्मिक गुरु हैं "।
स्वामी जी अपने विचारों दर्शन प्रत्येक व्यक्ति और युवाओं के प्रेरणा स्रोत के रूप में हमेशा प्रासंगिक हैं जिनके विचार हमें परिवार व्यक्ति समाज और राष्ट्र को सदैव एक दिशा देने का कार्य करते हैं|

4 टिप्पणियाँ
Very nice 👍 God bless you
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंइतने बड़े व्यक्तित्व का बड़ा ही सरल परिचय, सुंदर लेख।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंकृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। जिससे हम लेख की गुणवत्ता बढ़ा सकें।
धन्यवाद