अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस, International Women's Day, संभव, shambhav, शाम्भवी पाण्डेय
न समझ अबला तू आज की नारी को,
जो चुप - चुप सी रहा करती हैं
है दम इनमें भी आवाज लगाने की
जब जरूरत समझा करती हैं ।
है मान प्रतिष्ठा इनकी भी
स्वाभिमान से ये जीती हैं,
हैं आत्मविश्वास से परिपूर्ण ये
तो तुम पर भी भरोसा करती हैं ।
है अस्तित्व तुम्हारा इन्ही से
प्रकृति भी इनके बिना अधूरी है,
कर सम्मान इस नारी का,
जो आजू भी प्रेम की प्रतिमूर्ति है ।
है नजर चाँद-तारों पर इनकी,
तो अंतरिक्ष में कदम भी इनके हैं,
चाहे धरती हो या आकाश
हर जगह ये साथ में तेरे है ।
क्यों करता है तू जुल्म इनपे
क्या भूल गया अपने इतिहास को,
होता है सिर्फ विनाश तब
जब ये मर्यादा पार करती हैं ।
-शाम्भवी पाण्डेय
1 टिप्पणियाँ
प्रत्येक स्त्री को समर्पित
जवाब देंहटाएंचाहे वह किसी भी रूप मे
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